यह तुष्टीकरण नहीं तो क्या संतुष्टिकरण है


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जब आप अपने बेटी को अच्छे स्कूल में नहीं पढाते ! बचपन से ही उसके दिमाग में यह देते हैं की पैसे कम हैं …!! तो तुम्हारा भाई ही अच्छा स्कूल में पढ़ सकता है. यह तुष्टीकरण नहीं..

तो क्या संतुष्टिकरण है !!! आप बेटा को तब तक कुछ खरीद नहीं देते हैं…बातों-बातों में कह देते की बहन की शादी में से फ्री होने के बाद खरीद दूंगा ये तुष्टीकरण नहीं तो क्या संतुष्टीकरण है. देखो भैया ..!! सबकी अपनी सोच अपना विचार है हर व्यक्ति अपने जगह पर अपने फायदे के हिसाब से इस नीति को अपनाता है और मौका मिलते ही दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप तुष्टिकरण की व्याख्या अपने अपने हिसाब से अपने फायदे से इस शब्द की चीरफाड़ करते रहते हैं.

जब यह सवाल आप करेंगे तो सामने वाले को सांप सूंघ जाएगा. बगले झांक आपसे चर्चा-परिचर्चा करने से बचने की कोशिश करेगा. और याद रखिएगा जब बात तुष्टिकरण की आती है तो जो लोग आरोप लगाने में सबसे आगे रहते हैं, वही लोग इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करते हैं. कभी दलितों के नाम पर, कभी महिलाओं के नाम पर, कभी बूढ़े मां बाप के नाम पर, कभी धर्म संप्रदाय के नाम पर, तो कभी धन कमाने के नाम पर तुष्टीकरण का अपने हिसाब से उपयोग करते है. अपने घर में, समाज में, गांव में, और हर जगह अपने स्वार्थ के लिये… तो फिर आरोप क्यों ? फिर बात वही हो जाती है, तुष्टीकरण का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए और दुनिया को सजेशन इसी को कहते हैं, सौ चूहे खा कर बिल्ली चली हज करने.

लेखक : अविनाश भारतद्वाज, 9852410622

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