वसंत का आगमन होते ही, सरस्वती पूजा का आगमन एवं होली का दस्तक सदिओं से युवाओं को उत्साहित करता आ रहा है. तो आईये जाने वसंत ऋतू एवं माँ सरस्वती पूजन के महात्म्य को. वसंत के आगमन के साथ ही, मौसम सुहावना हो जाता है. पेड़ो में नव-नव पल्लव निकलने लगते हैं. पेड़ में रंग-बिरंग के मज्जर लगने लगते हैं. सरसों का पिला-पिला फुल तो जैसे प्रकृति को आभूषण पहना देता है. कोयल का मधुर आवाज कु-कु-कु… तो मनो मन को आनंदमय कर देता है. इस ऋतू में कई पर्व-त्योहार मनाये जाते हैं. रंग बिरंगे फल-फूलों से बाजार सजा होता है, वास्तव में इस ऋतू का भारतीय संस्कृति में एक अलग महत्व है.
इस ऋतू का महात्म्य इसलिए भी है क्योंकि माघ मास की शुक्ल पंचमी जिसे हम वसंत पंचमी भी कहते हैं, इस दिन विद्या की देवी माँ सरस्वती का पूजन किया जाता है. और ऋतू राज वसंत का आगमन इसी दिन होता है.
धार्मिक ग्रंथो के अनुसार ऐसी मान्यताएं हैं की जब ब्रम्हा जी ने सृष्टी की रचना की तो समस्त प्रकृति मूक थी, यानि की प्रकृति में किसी भी जीव-जंतु के पास आवाज नहीं था. फिर ब्रम्हा जी ने देवी सरस्वती को माघ मास की शुक्ल पंचमी के दिन प्रकट किया. सरस्वती वीणा लेकर प्रकट हुई और जैसे ही उन्होंने वीणा के तान छेड़े समस्त प्रकृति में वाणी आ गई. सरस्वती के अभिवादन के लिए ऋतुराज वसंत को बुलाया गया. बसंत के आते ही वातावरण खिल उठा. पशु-पक्षी सब ने मिल कर सरस्वती का अभिनन्दन किया. एवं जिसके बाद से यह दिन बुद्धि और ज्ञान पाने का दिन बन गया. यह भी माना जाता है की जब आश्रम परम्परा थी तो इसी दिन को बच्चों का उपनयन संस्कार कर गरु के आश्रम में शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेजा जाता था. और आज भी हमलोग इस दिन को बड़े ही धूम-धाम से सरस्वती पूजा के रूप में मनाते हैं.
इस दिन को, पीले रंग के वस्तु के उपयोग का एक अलग महत्व है. इसके पीछे वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक कारण भी है जो शोध से साबित हो चुका है यह रंग मनुष्य के उमंग को बढ़ता है. हमारे दिमाग को सक्रिय करता है. वैसे भी सरसों का फुल तो मानों हमारे मन को मोह लेती है. इस दृश्य को भी स्मरण करने से जैसे मन प्रसन्न हो जाता है. इस पर्व पर पीले एवं सफ़ेद रंग का पौशाक पहनने की मान्यताएं हैं कहा जाता है की पिला रंग उत्साह और विवेक का प्रतीक होता है वहीँ सफ़ेद रंग युवाओं में शांति का संचार करता है. ऐसी परिधान पहनने से..
माँ सरस्वती की संस्कृत में वंदना …………
“या कुंदेंदु तुषारहार धवला, या शुभ्र वस्त्रावृता, या वीणावर दण्डमंडितकरा, या श्वेतपद्मासना ।।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभ्रृतिभि र्देवै: सदा वन्दिता, सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहा ।।
शुक्लांब्रह्मविचार सार परमांआद्यां जगद्व्यापिनीं, वीणापुस्तक धारिणीं अभयदां जाड्यान्धकारापाहां ।।
हस्ते स्फाटिक मालीकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां, वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धि प्रदां शारदां ।।”
“सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नमः । वेद वेदान्त वेदांग विद्यास्थानेभ्यः एव च ।।
सरस्वती महाभागे विद्ये कमाल लोचने । विद्यारूपी विशालाक्षी विद्याम देहि नमोस्तुते ।।”
माँ शारदे की एक वंदना …….( गीत )
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ,
अज्ञानता से हमें तार दे माँ
तू स्वर की देवी है संगीत तुझसे,
हर शब्द तेरा है हर गीत तुझसे ।
हम हैं अकेले हम हैं अधूरे,
तेरी शरण में हमें प्यार दे माँ ।। हे शारदे माँ …..
मुनियों ने समझी, गुणीयों ने जानी,
वेदों की भाषा पुराणों की वाणी ।
हम भी तो समझे, हम भी तो जाने,
विद्या का हमको अधिकार दे माँ ।। हे शारदे माँ …
तू श्वेतवर्णी कमल पे विराजे,
हाथों में वीणा मुकुट सर पे साज़े ।
अज्ञानता के मिटा दे अंधरे,
उजालों का हमको संसार दे माँ ।।
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ …..
jay maa sharda,
very valuable moral study