सम्मान करें,अपनी सृजनहार का !


ashutosh jha

कई सदियां बीत गई शताब्दियां बीत गई सहस्त्राब्दियाँ बीत गई पर एक त्याग अथवा बलिदान जो मुख्य रूप से देखा गया और जिस की अवहेलना भी की गई वह है स्त्रियों का त्याग !

जी हां मेरा संदर्भ यहां स्त्रियों से ही है | क्योंकि यह एक साक्ष्य है कोई रहस्य नहीं जिसे छुपाया जाए और मैं यहां कोई आक्रोश प्रकट नहीं करना चाहता,  मेरी तो केवल यही चेष्टा है कि आपके  अंतर्मन में इस तथ्य का बोध हो और आप उस अवहेलना का त्याग करें | हमारे देश में सरकार महिला सशक्तिकरण पर हर संभव प्रयास कर रही है शिक्षा,  जागरूकता,  से लेकर आरक्षण तक  ! पर बात महिला सशक्तिकरण की नहीं है , बात यह है कि इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी और  क्या केवल सरकार द्वारा ही क्रियान्वित होगा ? उत्तर स्पष्ट है कि नहीं जब तक हर घर में हम जागरुक नहीं होंगे यह संभव नहीं है इसका कारण है कि हमारे समाज ने स्त्रियों को पराधीन बना दिया है पहले पुरुषों ने फिर बाद में इसी पराधीनता को भोगी हुई स्त्रियों ने भी | और फिर दुर्भाग्यवश यह हमारे समाज की कुप्रथा बन गयी |

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 कुप्रथा बनने के पश्चात , पुरुषो की सृजनहार , उनको जन्म देने वाली स्त्रियों का नियंत्रण पुरुषो के हाथ में चला गया और इस नियंत्रण को पुरुष अपना पुरुषार्थ समझने लगे | यह निंदनीय विडंबना हमारे समाज को धीरे धीरे पीछे लेकर चली गयी |

आधुनिक लोग और उनकी “छि:” वाली सोच !

 क्या स्त्रियों को वश में रखना पुरुषार्थ है ? उनकी इच्छाओं को दबाकर , चाहे वो बलपूर्वक  हो संवेदनात्मक रूप से विवश कर के , क्या यही पौरुष है? नहीं ! ये पौरुष नहीं है | ये अपने स्वार्थ के लिए किया गया एक दोहन है | जो व्यक्ति स्त्रियों का सम्मान नहीं कर सकता , वो पुरुष कहलाने योग्य ही नहीं ! इस संसार में हमारा अस्तित्व है क्योकि परमात्मा ने स्त्रियों का सृजन किया  | उनका सम्मान करने के लिए क्या यही एक कारण पर्याप्त नहीं?

स्त्री का सम्मान करना हमारा कर्तव्य ही नहीं अपितु पुरुषार्थ भी है | यदि हम इसे धर्म से जोड़ने का प्रयास करें तो भी हमारे धार्मिक ग्रंथ  हमें ना केवल स्त्रियों का सम्मान करने बल्कि हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए उन्हें प्रोत्साहन देने की भी शिक्षा देते हैं | उदाहरण के लिए ” मनु स्मृति ” का यह श्लोक पढ़िए –

यत्र नार्यस्तु पूज्‍यंते रमन्ते तत्र देवता: ||

यात्रेतास्तु न पुज्यन्ते सर्वस्तत्रा फला: क्रिया: ||

“संजीदा” पति चाहिए “खरीदा” हुआ नहीं

  [मनुस्मृति (3.56) ]

इसका अर्थ है जहाँ स्त्रियों का सम्मान होता है , उनकी आवश्यकताओं अपेक्षाओं की पूर्ति होती है , उस स्थान तथा परिवार पर देवता गण प्रसन्न रहते हैं | और जहाँ ऐसा नहीं होता और उनके साथ तिरस्कारपूर्ण व्यवहार किया जाता है , वहाँ देवकृपा नहीं होती और वहाँ किए गये कार्य सफल नहीं होते !

 ऐसे श्लोक वेदों में कई जगह वर्णित हैं | ये तो केवल धार्मिक साक्ष्य हैं , अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चर्चा की जाए  तो भी स्त्रियों की मानसिक दक्षता , जिसे अँग्रेज़ी में ” efficiency” कहते हैं वह पुरुषों की तुलना में अधिक होती है | इस बात का प्रमाण भी इस बात से मिल जाता है कि आज विश्व में और हमारे देश में भी , चाहे वो कोई प्रतियोगी परीक्षा हो या किसी बड़ी संस्था से जुड़ा व्यवसाय , महिलाओं ने हर जगह बहुमत से अपना वर्चस्व स्थापित किया है |

       हम भारतीय अपनी संस्कृति का दंभ भरते हैं , किंतु आप विकसित देशो में स्त्रियों की स्थिति देख लीजिए, वहाँ न केवल स्त्रियों को समान अधिकार प्राप्त है बल्कि उनकी भूमिका भी अत्यधिक सार्थक एवं जीवंत है जबकि यहाँ मर्यादा की आड़ में हमने स्त्रियों का दामन ही किया है | गर्भ में पल रही ” भ्रूण ” की हत्या का पाप भी हमारे देश में आज भी हो रहा है|

     पर अब दोषारोपण का समय नहीं है ना इससे कोई लाभ होगा  | आवश्यक है कि हम सत्य को समझें , ग्रहण करें और स्त्रियों को उचित सम्मान दें | उन्हें मानसिक पराधीनता से बाहर निकलने दें , उन्हें स्वावलंबी बनने दें | शक्ति की आराधना भी हम ही करते हैं और उनका साकार स्वरूप हम मनुष्यो में ही है | शक्ति स्त्री स्वरूप है और वह जब शिव के साथ होती हैं तभी शिव ” शिव ” हैं अन्यथा वह ” शव ” हैं | पुरुष भी शक्तिशाली स्त्री के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने से ही होता है |

बोए जाते हैं बेटे, उग जाती है बेटियाँ

     अतः इसे न मेरा निवेदन समझे न आदेश , बल्कि यह एक संदेश है अथवा आप सबको प्रेरित करने का प्रयास है | जो आप सबको ज्ञात है , बस आत्म मंथन की आवश्यकता है | स्त्रियों का आदर करें , उनके किए गये त्याग का सम्मान करें | चाहे उन्होने माता अथवा पत्नी के रूप मे त्याग किया हो या बहन , बेटी या किसी भी रूप मे आप के जीवन को संभाला हो | उन्हें उत्साह से भरें , और हमारे , आपके , देश के , पूरे विश्व के कल्याण के लिए उनके योगदान का सम्मान करें |


लेखक : आशुतोष चौधरी


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